World Thalassemia Day - खून के रिश्ते में शादी करने से बढ़ रहे हैं थैलेसीमिया के मरीज, रोकने के लिए करें यह काम
स्वर्णिम भारत न्यूज़ संवाददाता, रांची। थैलेसीमिया बीमारी होने की सबसे बड़ी वजह खून के रिश्ते में विवाह होना है। आपसी संबंध में विवाह होने से डीएनए में कई तरह के बदलाव आते हैं, जिससे थैलेसीमिया होने का खतरा बढ़ जाता है।
स्वर्णिम भारत न्यूज़ संवाददाता, रांची। थैलेसीमिया बीमारी होने की सबसे बड़ी वजह खून के रिश्ते में विवाह होना है। आपसी संबंध में विवाह होने से डीएनए में कई तरह के बदलाव आते हैं, जिससे थैलेसीमिया होने का खतरा बढ़ जाता है।
थैलेसीमिया के मरीज ट्राइबल और मुस्लिम आबादी में अधिक
झारखंड में सबसे अधिक थैलेसीमिया मरीजों की संख्या ट्राइबल और मुस्लिम आबादी में देखी जा रही है। सदर अस्पताल के हेमोटोलाजिस्ट डा. अभिषेक रंजन बताते हैं कि जरूरी है कि लोगों को जागरूक किया जाए।
विवाह से पूर्व स्क्रीनिंग महत्वपूर्ण हो, जिसमें लड़का व लड़की दोनों के ब्लड सैंपलों की जांच हो। उन्होंने बताया कि ट्राइबल और मुस्लिम आबादी में सबसे अधिक रक्त जनित रोग की समस्या देखने को मिलती है, जिसमें बच्चों में हिमोग्लोबिन की कमी। थैलेसीमिया में कम से कम हिमोग्लोबिन की मात्रा नौ ग्राम तक करना एक चुनौती होती है। इसके लिए मरीज के हिसाब से लगातार ब्लड चढ़ाया जाता है।
रांची में करीब 1000 बच्चे थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित
रांची में करीब 1000 बच्चे थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित हैं, जो निबंधित हैं। फिलहाल हर दिन रिम्स और सदर अस्पताल में करीब 80 थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को लेकर उनके माता-पिता पहुंचते हैं। इनके लिए सबसे बेहतर सुविधा सदर अस्पताल में उपलब्ध कराई गई है।
विवाह से पूर्व जांच कराना जरूरी
शादी से पूर्व महिला व पुरुष दोनों सीबीसी और एचबी इलेक्ट्रोफोरेसिस जांच कराएं। इस जांच से यह पता चल सकता है कि उनके होने वाले बच्चे को थैलेसीमिया हो सकता है या नहीं। गर्भधारण के 10वें हफ्ते से 12वें हफ्ते के बीच सीवीएस (क्रानिक विलस सैंपलिंग) जांच के जरिए पता चल सकता है कि भ्रूण थैलेसीमिया से पीड़ित है या नहीं।
डा. अभिषेक रंजन बताते हैं कि थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रोग है और इसे रोकने के लिए सबसे जरूरी है जेनेटिक काउंसलिंग। इस काउंसिलिंग के माध्यम से शादी करने जा रहे कपल की जांचकर भविष्य के खतरे को जाना जा सकता है।
अगर शादी के बाद पहला बच्चा थैलेसीमिया से ग्रसित है तो दूसरे बच्चे के बारे में नहीं सोचें। इसके अलावा अगर विवाह के पूर्व जांच नहीं की गई है और गर्भधारण कर लिया जाता है जो एंटीनेटल जांच कर बच्चे के थैलेसीमिया होने का प्रतिशत पता लगाया जा सकता है।
थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की औसतन आयु 15 से 20 साल
थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की औसतन आयु 15 से 20 वर्ष देखी जाती है। इसकी वजह हीमोग्लोबिन का लगातार कम होना है। 15 वर्ष की उम्र से ही लीवर, किडनी, हार्ट जैसे अंग प्रभावित होने लगते हैं।
डा. अभिषेक रंजन बताते हैं कि अगर ऐसे बच्चों की शुरू से ही अच्छी माॅनिटरिंग की जाए, उनका हीमोग्लोबिन का लेवल बनाकर रखा जाए, शरीर से अत्यधिक आयरन को निकाला जाए तो ऐसे बच्चे 50 से 60 वर्ष की आयु अच्छे से जी सकते हैं। इसका इलाज महंगा होता है लेकिन पीएम फंड से इस बीमारी के इलाज में सहयोग किया जा रहा है।
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